Short Stories In Hindi I September I Ek Mulaqat
Sep 14, 2025, 17:07 IST
कहानी का आरंभ: मुलाक़ात और चाहत
नीहा एक कॉलेज-स्टूडेंट है जो विवेकपुर नामक शहर में रहती है। शहर की तेज़ी भरी ज़िंदगी में भी वो शांत है, अपने अंदर की दुनिया में रमने वाली। एक दिन कॉलेज के पुस्तकालय में, जब वो अपनी पुरानी पसंदीदा किताबों की अलमारी से एक कविता-संग्रह निकाल रही थी, तभी उसकी नज़र उस नए लड़के पर पड़ी—अमित। अमित ने भी एक कविता अंग्रेज़ी-हिन्दी मिश्रित लिखी थी और शायरी के पन्नों को संभालते हुए मुस्कुरा रहा था। जैसा कि कहते हैं, पहली मुलाक़ात कुछ शब्दों से नहीं होती, एक नज़र ही काफी है।
परिचय और बातचीत
अमित और नीहा दोनों की कविता-प्रेम की एक साझा दुनिया थी। library की वही शाम उनके लिए शुरू थी। उन्होंने बात की—पॉएट्री, संगीत, सपनों के बारे में। अमित ने अपनी और नीहा की पसंदीदा कविताएँ सुनाईं, नीहा ने अपने मन के गीत गाए। दोनों को लगा कि समय भी रुक गया हो जैसे। अमुक उस दिन नीला आसमान था, हवा में हल्की खनक, और किताबों की खुशबू—हर चीज़ ने इस मुलाक़ात को खास बना दिया।
मुलाक़ात का वादा
उनकी बातचीत ने एक छोटा वादा दिया—फिर मिलेंगे। कॉलेज के अगले दिन अमित ने नीहा के लिए एक छोटी-सी कविता लिखी और उसे पुस्तकालय की मेज़ पर रख दी। नीहा ने उसे पाकर महसूस किया कि शायद प्यार की शुरुआत होती है ऐसे ही—साधारण, सरल, पर दिल को छू लेने वाली। मगर कॉलेज की व्यस्तताओं और परीक्षाओं ने बीच में दूरी ला दी।
दूरी और एहसास
कुछ हफ्तों बाद नीहा ने देखा कि अमित कम आता है, कभी-कभी फोन करता है, और उसकी बातें अधूरी-अधूरी लगने लगीं। नीहा का दिल कांप रहा था, पर उसने अपनी उम्मीद नहीं खोई। उसने जाना कि प्यार सिर्फ होने का नाम नहीं, इंतज़ार और बेचैनी भी है—पर ये सब भी एक एहसास का हिस्सा है। नीहा ने अपनी भावनाएँ कविता में उतारीं, अमित के लिए भेजी, लेकिन जवाब में सिर्फ एक शॉर्ट मैसेज मिला: “परीक्षाएँ है, मिलूंगा।”
मुलाक़ात का असली हक़
अंततः कॉलेज की छुट्टियों में, अमित ने नीहा से मिलने का समय मांगा। वे दोनों पार्क की एक बेंच पर बैठे, जहाँ नीला आसमान और सरसराती हवा फिर से थी। अमित ने कहा कि उसने महसूस किया कि पहली मुलाक़ात उसकी ज़िन्दगी में यूँ ही थी—खत्म नहीं होनी चाहिए। उसने नीहा से पूछा कि क्या वह वाक़ई चाहती है कि इस तरह की मुलाक़ातों को वह अपना हक़ मानें—कि वो दोस्त हों, साथी हों, या कुछ और। नीहा ने हाँ कहा, क्योंकि उस दिन उसने समझा कि मुलाक़ात सिर्फ एक पल नहीं होती—वो एक एहसास है, जो दिल में बस जाए।
समापन: पल और एहसास
उनकी कहानी प्यार की नहीं, बल्कि उस वादे की है जो पहली मुलाक़ात में होता है—उस वादे का कि दो दिल मिलेंगे, चाहे ज़िंदगी की व्यस्तता कितनी भी हो। उस मुलाक़ात ने नीहा और अमित को एहसास दिया कि हक़ सिर्फ़ अधिकार नहीं होता, बल्कि उस विश्वास और उम्मीद का नाम है जो पहले मिलन में पलती है। और इस तरह उनकी मुलाक़ात बनी एक सच्ची ज़िंदगी की कहानी।
नीहा एक कॉलेज-स्टूडेंट है जो विवेकपुर नामक शहर में रहती है। शहर की तेज़ी भरी ज़िंदगी में भी वो शांत है, अपने अंदर की दुनिया में रमने वाली। एक दिन कॉलेज के पुस्तकालय में, जब वो अपनी पुरानी पसंदीदा किताबों की अलमारी से एक कविता-संग्रह निकाल रही थी, तभी उसकी नज़र उस नए लड़के पर पड़ी—अमित। अमित ने भी एक कविता अंग्रेज़ी-हिन्दी मिश्रित लिखी थी और शायरी के पन्नों को संभालते हुए मुस्कुरा रहा था। जैसा कि कहते हैं, पहली मुलाक़ात कुछ शब्दों से नहीं होती, एक नज़र ही काफी है।
परिचय और बातचीत
अमित और नीहा दोनों की कविता-प्रेम की एक साझा दुनिया थी। library की वही शाम उनके लिए शुरू थी। उन्होंने बात की—पॉएट्री, संगीत, सपनों के बारे में। अमित ने अपनी और नीहा की पसंदीदा कविताएँ सुनाईं, नीहा ने अपने मन के गीत गाए। दोनों को लगा कि समय भी रुक गया हो जैसे। अमुक उस दिन नीला आसमान था, हवा में हल्की खनक, और किताबों की खुशबू—हर चीज़ ने इस मुलाक़ात को खास बना दिया।
मुलाक़ात का वादा
उनकी बातचीत ने एक छोटा वादा दिया—फिर मिलेंगे। कॉलेज के अगले दिन अमित ने नीहा के लिए एक छोटी-सी कविता लिखी और उसे पुस्तकालय की मेज़ पर रख दी। नीहा ने उसे पाकर महसूस किया कि शायद प्यार की शुरुआत होती है ऐसे ही—साधारण, सरल, पर दिल को छू लेने वाली। मगर कॉलेज की व्यस्तताओं और परीक्षाओं ने बीच में दूरी ला दी।
दूरी और एहसास
कुछ हफ्तों बाद नीहा ने देखा कि अमित कम आता है, कभी-कभी फोन करता है, और उसकी बातें अधूरी-अधूरी लगने लगीं। नीहा का दिल कांप रहा था, पर उसने अपनी उम्मीद नहीं खोई। उसने जाना कि प्यार सिर्फ होने का नाम नहीं, इंतज़ार और बेचैनी भी है—पर ये सब भी एक एहसास का हिस्सा है। नीहा ने अपनी भावनाएँ कविता में उतारीं, अमित के लिए भेजी, लेकिन जवाब में सिर्फ एक शॉर्ट मैसेज मिला: “परीक्षाएँ है, मिलूंगा।”
मुलाक़ात का असली हक़
अंततः कॉलेज की छुट्टियों में, अमित ने नीहा से मिलने का समय मांगा। वे दोनों पार्क की एक बेंच पर बैठे, जहाँ नीला आसमान और सरसराती हवा फिर से थी। अमित ने कहा कि उसने महसूस किया कि पहली मुलाक़ात उसकी ज़िन्दगी में यूँ ही थी—खत्म नहीं होनी चाहिए। उसने नीहा से पूछा कि क्या वह वाक़ई चाहती है कि इस तरह की मुलाक़ातों को वह अपना हक़ मानें—कि वो दोस्त हों, साथी हों, या कुछ और। नीहा ने हाँ कहा, क्योंकि उस दिन उसने समझा कि मुलाक़ात सिर्फ एक पल नहीं होती—वो एक एहसास है, जो दिल में बस जाए।
समापन: पल और एहसास
उनकी कहानी प्यार की नहीं, बल्कि उस वादे की है जो पहली मुलाक़ात में होता है—उस वादे का कि दो दिल मिलेंगे, चाहे ज़िंदगी की व्यस्तता कितनी भी हो। उस मुलाक़ात ने नीहा और अमित को एहसास दिया कि हक़ सिर्फ़ अधिकार नहीं होता, बल्कि उस विश्वास और उम्मीद का नाम है जो पहले मिलन में पलती है। और इस तरह उनकी मुलाक़ात बनी एक सच्ची ज़िंदगी की कहानी।
